तुम्हारी ये कमी

पता नहीं तुम्हारी ये कमी क्यों खलने लगती है l

आग में अपनी ये दोस्ती सुलगने लगती है,
तब हमारी बातें सिर्फ जी हजूरी हो जाती है
फिर तेरी एक मीठी गुफ्तगू जरूरी हो जाती है।

जैसे हमारी नजरों से पहले बातें हो जाती थी
उन्हीं बातों से हमारी मुस्कुराहट बन जाती थी
तेरे लिए ख्वाबों की दुनिया सजाया करता था
तुम उसी दुनिया में रोज बातों2 में आया करती थी

तुम अब मुझसे कहीं दूर चली जाती हो
कभी मैं तो 
आज तुम, सुबह से शाम हो जाती हो,

मेरे पुकार की आवाज कम हो जाती है
इसीलिए झलक तुम्हारी दूर हो जाती है l

अब मैं तेरे और करीब आऊंगा
बिन कुछ पूछे तेरे में शमा जाऊंगा,
फिर हर रोज की तरह तेरी एक पुकार में
तेरे में शमा जाया करूँगा।  

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